SATIRE


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जाड़ा बनाम गर्मी
आप ठीक कहते हैं जनाब। जाड़ा बनाम गर्मीइस बहस का कोई मतलब नहीं। इस विषय पर बहस करना मतलब फिजूल वक्त जाया करना। पुरखे कह गए कि बहस ऐसी हो जिसका नतीजा निकले तो ठीक वरना वह किस काम की। लेकिन बहस तो बहस है। कभी भी, किसी भी बात पर पैदा हो जाती है। और फिर वह अनवरत दिशाहीन चलती रहती है। एक अच्छी बहस वही होती है जो गर्मा-गरम होकर भी बे-नतीजा निकले। दरअसल बहस के भाग्य में ही उसका निष्कर्ष बे-नतीजा होना लिखा है। वैसे भी सही दिशा में चलने वाली बहस के नतीजे भी खत्म होते-होते बे-नतीजा हो जाते हैं।
अब इस उपरोक्त शीर्षक की बहस को ही लीजिए। मैं तो नव वर्ष पर एक वरीष्ठ पत्रकार को शुभकामनाएं देने भर गया था। परंपरानुसार बाकायदा हाथ मिलाकर उन्हें नए साल की बधाई दी। मगर वे तो स्वेटर, जाकिट, मफलर ओढ़े कुछ और ही अंदाज में बैठे थे। प्रॉपर्टी की ठंडी पड़ी कीमतों का गुस्सा वे मेरे ठंडे हाथों पर उतार बैठे। मिलाते ही बोले महोदय, यह बधाई देने का वक्त नहीं है। देख रहे हैं जाड़ा किस कदर पड़ रही है। मैं कुछ समझ पाता इससे पहले ही मोर्चा खोलते हुए वे बोले- ये जाड़ा गरीब विरोधी है। मैं उनसे कुछ और अर्ज करता इससे पहले ही उन्होंने भौएं सीकोड़ते हुए गरीब की पूरी दुर्दशा को अपने चेहरे पर चितरित की और गड़गडा़ए- ज़रा सोचिए इस वक्त एक गरीब की क्या हालत हो रही होगी। बहस के लिए तो एक शब्द, एक अल्फाज़ ही काफी होता है फिर उन्होंने तो मुझ पर पूरी तोप दागी थी। मुझे इतना पूछने का मौका भी नहीं दिया कि महोदय आपकी नाक जाड़े से लाल है या गुस्से से। सो मैंने भी जाड़े की तरफ से मोर्चा संभाला और कहा महोदय, लेकिन मैं जाड़े का समर्थक हूं और गर्मी से सख्त नफरत करता हूं। बस फिर क्या था हम दोनों अपनीअपनी गरिमा भूल एक दूसरे पर पिल पड़े।  
मैंने कहा जाड़े के कितने फायदे हैं। फ्रीज की जरूरत नहीं पड़ती। एक गरीब आदमी आधा लीटर दूध बाहर रखकर भूल भी जाये तो खराब नहीं होता। खाना थोड़ा ज्यादा बन भी जाए तो जाया नहीं जाता। वह ज्यादा मेहनत कर के ज्यादा मजदूरी कमा सकता है। गर्मी में तो वह न खा सकता है न पी सकता है। दूध के प्याले को निवाला बनाने से पहले ही वह फट जाता है।  न जाने कितनी तरह की बीमारियां और न जाने कितने तरह के रोग। जनाब, जनाब, जनाब अब मेरी भी सुन लीजिए। आप तो जाड़े में कार के शीशे चढ़ाकर मजे में घर से दफतर चले आते हैं। आप क्या जाने जाड़ा क्या होता है। जाड़े में जिसके तन पर कपड़े नहीं होते उससे पूछिये जाड़े का मतलब। गर्मी में तो आदमी आराम से घूम फिर सकता है, सो सकता है। जाड़े में कहां जाए गरीब आदमी ? थोड़ा बहुत पत्रकारिता का अनुभव मुझे भी होने कारण मैं यह भांप चुका था कि अब यह महोदय आंकड़ों पर आकर मुझसे बहस जीतने की कोशिश करेंगे। जाड़े और गर्मी की मौतें गिनवाएंगे। जो मैं इस नए साल पर सुनना नहीं चाहता था। अतः मैंने बहस को बारिश की तरफ मोड़ दिया। तब कहीं जाकर बहस में कुछ नरमी आयी। और आती क्यों न। बारिश का नाम लेते ही उन्हें अपनी बिसरी प्रेमिका की याद आयी और मुझे भी फिल्मों के कुछ चुनिंदा सीन। बहस सकारात्मक दिशा में दौड़ पड़ी और हम जाड़ा बनाम गर्मी को भूल दोनों नए निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए तर्क-कुतर्क करने लगे। हम दोनों भूल चुके थे कि बारिश में एक गरीब आदमी की क्या हालत होती है। बाढ़ की विकरालता क्या होती है। सम्पत्ति का कितना नुकसान होता है। कितने गरीब बाढ़ के दौरान हताहत होते हैं।        

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डोरेमॉन तुम कहां हो...?

जानते हो महंगाई बेकाबू हो गई है। प्याज, लहसुन और बाकि सब्जियों के दाम भी आसमान छू रहे हैं। डोरेमॉन तुम कहां हो ? क्या तुम्हें नहीं पता कि देश में हालत कितने बेकाबू हो गए है।  कोई भी चीज़ आम आदमी के बस में नहीं है। वह चाहकर भी प्याज-रोटी नहीं खा सकता। डोरेमॉन तुम कहां हो ? दूध फिर महंगा हो गया है। सीएनजी और पीएनजी के दाम भी सरकार ने बढ़ा दिए हैं। पेट्रोल के दामों को लेकर चर्चा शुरु है। एलपीजी के दाम भी बस बढ़ने ही वाले हैं। तुम कहां हो डोरेमॉन ? जल्दी आओ। बहुत जल्दी। और जल्दी से कोई अपना गैजेट निकालो जिससे इस महंगाई पर काबू पाया जा सके। कुछ इसी अंदाज में नोविता (आम आदमी) चिल्ला रहा था और महंगाई जियांग की तरह  बार-बार नोविता पर हल्ला बोल रही थी।
ओ हो माफ कीजिए जनाब, मैं आपको भूमिका बताने से पहले ही पूरी प्रस्तावना लिख गया। जानता हूं कि आप यह सब पढ़कर कन्फ्यूज हो रहे होंगे। दरअसल मैं महंगाई पर व्यंग्य लिख रहा था न कि कार्टून चैनल पर आने वाले कार्टून कैरेक्टर डोरेमॉन की कथा सुना रहा था। सच कहता हूं डीयर, मेरा इरादा आपको कंफ्यूज करने का बिल्कुल नहीं है। आजकल मैं अपनी दूध पीती बच्ची के साथ फुल टू डोरेमॉन का मजा लेता हूं। रोज़ डोरेमॉन अपना कोई न कोई नया गैजेट निकालता है और नोविता(उसका दोस्त) की समस्याएं चुटकियों में हल कर देता है। सो ऐसे ही बैठे-ठाले एक दिन मैं अपने आपको नोविता समझ बैठा और अचानक चिल्ला पड़ा डोरेमॉन तु कहां हो..? यकायक आयी इस ध्वनि से मेरी बच्ची भी हथप्रभ थी। लेकिन कुछ ही पलों में वह नार्मल होकर फिर डोरेमॉन देखने में तन्मय हो गई। लेकिन मैं अपने विचारों में खोता चला गया। उसे क्या पता कि उसके पापा दूध में चीनी कम क्यों डालते है। वह तो पापा की इसी समझाईश पर दूध पी लेती है कि बेटा ज्यादा चीनी खाना अच्छी बात नहीं। असल बात तो यह है कि उसके पापा सेहत नहीं बल्कि दाम की वजह से उसके कप में चीनी कम घोलते हैं।
खैर छोड़िये भी। मैं बात तो डोरेमॉन से कर रहा था। डोरेमॉन, डोरेमॉन जल्दी से अपना कोई गैजेट निकालो जिससे मैं इस भीषण महंगाई से लड़ सकूं। डोरेमॉन ने इधर उधर देखा और गहरी-लंबी सांस भर कर बोला मुझे माफ करना नोविता इस तरह को कोई गैजेट नहीं जिससे तुम महंगाई से लड़ सको। मगर हां, मेरे पास ऐसे छोटे-छोटे कई गैजेट हैं जिससे तुम अलग-अलग प्याज, लहसुन, दूध, पेट्रोल, गैस आदि से लड़ सकते हो। सच में..मेरा इतना कहने की देर थी कि अचानक डोरेमॉन बोल पड़ा।
...और ये मेरा पहला गैजेट ओनियन लॉलीपॉप। इसको बार बार चूस कर तुम प्याज का मजा ले सकते हो जिससे तुम्हें प्याज की कमी महसूस नहीं होगी। और यदि मुझे लहसुन की कमी महसूस हुई तो..? –मैंने उससे पूछा। डोरेमॉन बोला- ये रहा मेरा अगला गैजेट गार्लिक नैपकीन। उससे क्या होगा डोरेमॉन..? जब भी तुम्हें लहसुन की कमी महसूस हो तो इस नैपकीन से अपने हाथ, मुंह पोंछ लेना। तुम्हें अपने आप लहसुन की महक आ जाएगी और तुम्हें उसकी कमी महसूस नहीं होगी। और इस नेप्कीन को तुम्हारा पूरा परिवार इस्तेमाल कर सकता है। इसके बाद डोरेमॉन एक-एक कर गैजेट दिखाता गया और मुझे देता गया। अब मैं भी नोविता की तरह कुछ नक चढ़ा तो था ही। सो डोरेमॉन से कह बैठा- डोरेमॉन तुम्हारे गैजेट की क्वालिटी बड़ी खराब है ? बस फिर क्या था डोरेमॉन गुस्से से तमतमा उठा और चिल्ला कर बोला- नोविता(आम आदमी) तुम लोगों के साथ यही दिक्कत है, जितना मिलता है उतने में संतुष्ट नहीं होते इसलिए महंगाई तुम्हें सताती है। बचत करना सीखते नहीं। कुछ दिन प्याज-लहसुन नहीं खाओगे तो क्या बिगड़ जाएगा ?  
मुझे माफ कर दो डोरेमॉन। मैंने तो ऐसे ही मजाक में कह दिया था- मैंने कहा। बस इसी मजाक की आदतों की वजह से सरकार तुम्हें गंभीरता से नहीं लेती- डोरेमॉन बोला। इसके बाद डोरेमॉन ने मुझे और भी बहुत सारे गैजेट दिए। लेकिन चलते-चलते फिर भी मैंने एक ऐर गैजेट मांगने की सोची और पूछा- क्या इन नेताओं को सबक सीखाने का कोई गैजेट तुम्हारे पास है डोरेमॉन.? सुनते ही डोरेमॉन भाग खड़ा हुआ और बोला ऐसा कोई गैजेट मेरा पास होता तो कब की एक-एक की अकल ठीकाने लगा देता..... बाय-बाय नोविता(आम आदमी)।


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